हम इस काली कवच के लाभ जैसे समस्या को नाश, पापो का नाश इ.महत्व और उपयोग के बारे में चर्चा करेंगे, जिससे आप अपने जीवन को आनंद देने वाला और निर्भय बना सकते हैं।
शत्रु नाशक काली कवच
श्री गणेशाय नम:
कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम्।
नाथ त्वत्तो हि सर्वज्ञ भद्रकाल्याश्च साम्प्रतम्॥
नारायण उवाच श्रृणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम्।
गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्॥
कवचं श्रोतुमिच्छामि तां च विद्यां दशाक्षरीम्।
नाथ त्वत्तो हि सर्वज्ञ भद्रकाल्याश्च साम्प्रतम्॥
नारायण उवाच श्रृणु नारद वक्ष्यामि महाविद्यां दशाक्षरीम्।
गोपनीयं च कवचं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम्॥
ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहेति च दशाक्षरीम्।
दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सूर्यपर्वणि॥
दुर्वासा हि ददौ राज्ञे पुष्करे सूर्यपर्वणि॥
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धि: कृता पुरा।
पञ्चलक्षजपेनैव पठन् कवचमुत्तमम्॥
पञ्चलक्षजपेनैव पठन् कवचमुत्तमम्॥
बभूव सिद्धकवचोऽप्ययोध्यामाजगाम स:।
कृत्स्नां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादत:॥
कृत्स्नां हि पृथिवीं जिग्ये कवचस्य प्रसादत:॥
नारद उवाच श्रुता दशाक्षरी विद्या त्रिषु लोकेषु दुर्लभा।
अधुना श्रोतुमिच्छामि कवचं ब्रूहि मे प्रभो॥
अधुना श्रोतुमिच्छामि कवचं ब्रूहि मे प्रभो॥
नारायण उवाच श्रृणु वक्ष्यामि विपे्रन्द्र कवचं परमाद्भुतम्।
नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा॥
नारायणेन यद् दत्तं कृपया शूलिने पुरा॥
त्रिपुरस्य वधे घोरे शिवस्य विजयाय च।
तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने॥
तदेव शूलिना दत्तं पुरा दुर्वाससे मुने॥
दुर्वाससा च यद् दत्तं सुचन्द्राय महात्मने।
अतिगुह्यतरं तत्त् वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम्॥
अतिगुह्यतरं तत्त् वं सर्वमन्त्रौघविग्रहम्॥
ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने॥
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने॥
ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु॥
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु॥
ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेऽधरयुग्मकम्।
ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु॥
ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु॥
ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु।
क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम॥
क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम॥
क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्ष: सदावतु।
क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु॥
क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु॥
ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पष्ठं सदावतु।
रक्त बीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु॥
रक्त बीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु॥
ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु।
ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु॥
ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु॥
॥ इति कवच स्तोत्र सर्पुम ॥
शत्रु नाशक काली कवच पाठ कैसे करे?
इस काली कवच का पाठ आप कबी भी कर सकते है, लेकिन इसका जो विधान है की आप शत्रुओं का भय, नाकारात्मकता तथा कोई भी कठिनाई, रोग-व्याधि, डर, नाकारात्मकता तथा कोई भी कठिनाई का नाश करने के लिए यह कवच को उपयुक्त कहा गया है। इसका रोज 5 बार और नवरात्रों के समय 21 बार पाठ कर सकते हैशत्रु नाशक काली कवच के लाभ
- शत्रु का भय नाश: इस कवच के दैनदिन पाठ से शत्रुवोका नाश होते जाता है। शत्रु का भय तेजीसे नष्ट होते जाताहै। शत्रु की कोई भी चाल उस साधक को हानी नहीं पोहचाती।
- रोग-व्याधि नाश: जब किसी व्यक्ति को कोई रोग बाधा हो जाती है तो उस समय यह कवच का पाठ करनेसे सब ख़तम हो जाती है।
- डर का नाश: कोई भी व्यक्ति किसी न किसी चीस से डरता रहता है जैसे किसी को सर्प का डर, जल का डर इ. तो इसमे यह कवच उसके डर का नाश होने लगता है।
- नाकारात्मकता: कभी कभी व्यक्ति के मन नाकारात्मकता अजति है इससे व्यक्ति अन्दर से खुश नहीं रह पाता और उसका की भी चीज में मन नहीं लगता। ऐसे में इस कवच का पाठ आपके लिए बहुत लाभ देता है नाकारात्मकता दूर करता रहता है।
- कठिनाईयो का नाश: जीवन हमें कोई कोई कम में अड़चन और कठिनाई सामना करना पडता है ऐसे में यह कवच हमें इन कठिनाई, अड़चन और रूकावट को नहीं होने देता।
जीवा उपयोगी ज्ञान
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