गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई | गुरु गोरखनाथ की कहानी


गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई | गुरु गोरखनाथ की कहानी: गुरु गोरखनाथ, जिन्हें गोरक्षनाथ भी कहा जाता है, नाथ संप्रदाय के संस्थापक और एक महान योगी थे। वे भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। इनके ऊपर अनेक चमत्कारी कहानियां, कथाएं और ग्रंथ मौजूद हैं। 

हम इनमें से कुछ चीजों के बारे में आपको बताएंगे। उनका जन्म 8वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ था। 

वैसे इनके जन्म के रहस्य को लेकर विद्वानों में अपना-अपना मतभेद है और बहुत से दंत कथा प्रचलित हैं। उनके गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे, जिन्हें हठयोग के जनक माना जाता है। गुरु गोरखनाथ ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रंथों की रचना की। 

उन्होंने नाथ संप्रदाय के सिद्धांतों को प्रचारित किया, जो योग, ध्यान और तंत्र के आधार पर हैं। वे एक चमत्कारी योगी के रूप में भी जाने जाते हैं, जिनके पास कई सिद्धियां थीं। 

गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में भैरोनाथ, बाबा कालभैरव, बाबा भैरवनाथ और बाबा बालकनाथ शामिल हैं। नाथ संप्रदाय आज भी भारत और नेपाल में एक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन है।


आखिर गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई 

गोरखनाथ की मृत्यु 10वीं शताब्दी में हुई थी। उनकी समाधि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है। गुरु गोरखनाथ की मृत्यु के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया और मोक्ष प्राप्त कर लिया, जबकि अन्य का मानना ​​है कि उन्होंने एक प्राकृतिक मौत मर ली।

एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार, गुरु गोरखनाथ ने अपनी मृत्यु के लिए एक तिथि निर्धारित की थी। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि वे उस तिथि को एक विशेष स्थान पर एकत्र होंगे। जब वह तिथि आई, तो गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के सामने प्रकट हुए और उन्हें बताया कि वे अब उनके शरीर को छोड़ने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को अपने शरीर को न जलाए जाने और न ही दफनाए जाने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि वे अपने शरीर को एक गुप्त स्थान पर छोड़ देंगे।  

गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्यों को यह भी बताया कि वे अब भी उनके साथ होंगे, भले ही वे उनके शरीर में न हों। उन्होंने कहा कि वे अपने शिष्यों के दिलों में और उनके आध्यात्मिक मार्ग में रहेंगे।  

गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्यों को आशीर्वाद दिया और फिर उनके शरीर को छोड़ दिया। उनके शिष्यों ने उनके शरीर को एक गुप्त स्थान पर छोड़ दिया, जिसे आज भी कोई नहीं जानता।  

एक अन्य कहानी के अनुसार, गुरु गोरखनाथ ने एक प्राकृतिक मौत मर ली। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अपने शिष्यों को बताया कि वे अब भी उनके साथ होंगे, भले ही वे उनके शरीर में न हों। उन्होंने कहा कि वे अपने शिष्यों के दिलों में और उनके आध्यात्मिक मार्ग में रहेंगे।  

गुरु गोरखनाथ की मृत्यु के बाद, उनके शिष्यों ने उनके विचारों और शिक्षाओं को फैलाना शुरू कर दिया। नाथ संप्रदाय, जिसकी स्थापना गुरु गोरखनाथ ने की थी, आज भी भारत में एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक संप्रदाय है।

अंततः, गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई, यह एक रहस्य है। हालांकि, उनके शिष्यों का मानना ​​है कि वह एक महान संत और योगी थे, जिन्होंने अपने जीवन के माध्यम से दुनिया को बहुत कुछ दिया। 

गुरु गोरखनाथ की जीवन कथा के बारेमे | Guru gorakhnath ki kahani

गुरु गोरखनाथ की कथा: एक दिन आदिमाया शक्ति और शिव इनके बीच मैं ऐसा संवाद हुवा कि आदिमाया ने कहा " हे शिव आप शक्ति के अलावा अधुरे हो, मैं आपके साथ रहे बिना आप कोई भी कार्य कर नहीं सकते मेरा अस्तित्वहि शव से शीव है सिर्फ मन याने पृथ्वी तलापर सत्य है।

शीव ने तयकिया कि शीव यह शक्ति के बजाय भी कार्य कर सकते है। शीव यह शक्ति के अधीन नहीं बल्की शक्ति हि शिव के अधीन है। उस समय उन्होने कहा जैसे कि–हे शक्ति जहा कुंभ है वहा मिट्टी है, लेकीन जहा मिट्टी है वहा कुंभ है ऐसा कहा नहीं जाता। 

कुंभ जिस मिट्टी से बना है वह टूट गया तो मिट्टी-मिट्टी हि रहेगा। मिट्टी कुंभ नहीं बन सकती। परंतु आदिमाया शक्ति को यह बात रास नहीं आई शिवजी ने मन हि मन यह बात जानकर संदेह दूर करनेका सोचा। एक दिन घुमते-घुमते उन्होने (शिवजीने) शक्तीको एक गुंफा दिखाई और कहा आप उन योगी से मिलकर आना जो शक्ति विरहीत (शक्ती के सीवाय) संचार करते है। 

जिस समय शक्ति उन योगिओके सामने आई तब उनका तेजस्वी तथा बाल रूप देखकर जिस कार्य के लिये आई थी वह भूल गयी। सचेत मैं आनेपर अपने कार्य कि उन्हे याद आई। उन्होने उन योगिओको आदेश दिया उन्होने उसका जवाब नहीं दिया, यह देखकर शक्ति क्रोधीत हुई और उन्हे परास्त करने के लिए सिद्ध होकर अपनेमै स्थितः प्रचंड विध्वंसक उर्जा निर्माण करके योगियो के उपर छोड दि। 

उन विध्वंसक उर्जा हि आज दशमहा विद्या के नाम से जाना जाता है। उनका योगिओ के उपर कुंछ परिणाम नहीं हुवा। जिस वक़्त योगिओ ने उस उर्जा को दबाया उस वक़्त आदिमाया शक्ति को पस्तावा हुवा। और उन्होने कबूल कर लिया के मैं तीनो लोको के जीवो कि माता हु फिर भी ये योगी कठीण है। 

संकट मैं होणे के कारण उन्होने शिवजी कि प्रार्थना शुरू कर दि उस समय उनको ऐसा लगा कि शिवजी स्वयं गोरक्षनाथ जी का ध्यान कर रहे है। आदिमाता शक्ति शिवजी को शरण जाके उनकी बिनती कि मैं सब जीवो कि माता हु फिर भी मैं आपकी शिष्या हु। आप कोण है वह मुझे बताये। योगी जी ने कहा मैं हि शिव हु आपके साथ जो शिव है वह मेरी हि माया है। 

गोरक्ष मतलब जहा-जहा आत्मा है उसका रक्षण करनेवाला शिव हि गोरक्ष है (महाराष्ट्र मैं जो भक्तिसार ग्रंथ है उसमे गोरक्ष मतलब सत्य नहीं है वहा गो का अर्थ पवित्र आत्मा है।  उसके रक्षण के लिये तय्यार रहाता है। उसके बाद शक्ति ने मान्य कर लिया शिव शक्ति विरहीत संचार करते है। शक्ति अधीन नाहि स्व अस्तित्व है। इसलिए शास्त्र पुराण कहते है गोरक्ष हि शिव है। 

गोरखनाथ की प्रमुख उपलब्धियां  

  • नाथ संप्रदाय की स्थापना 
  • हठयोग के प्रचार-प्रसार 
  • नाथ संप्रदाय के सिद्धांतों को प्रचारित करना 
  • अनेकों ग्रंथों की रचना 
  • चमत्कारी योग सिद्धियों का प्रदर्शन 

गोरखनाथ के प्रमुख ग्रंथ  

  • गोरखनाथ गीता 
  • गोरखनाथ मन्त्रावली 
  • गोरखनाथ तंत्र 
  • गोरखनाथ स्तोत्र  

गोरखनाथ की शिक्षाए 

  1. योग के माध्यम से शरीर और मन को नियंत्रित करना 
  2. ध्यान के माध्यम से मन को एकाग्र करना 
  3. तंत्र के माध्यम से आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करना गोरखनाथ का प्रभाव 

गोरखनाथ का प्रभाव  

गोरखनाथ का प्रभाव भारत और नेपाल के अलावा अन्य देशों में भी फैला हुआ है। नाथ संप्रदाय आज भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन है।  गोरखनाथ को एक महान योगी और संत के रूप में माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से लोगों को आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।


निष्कर्ष

गुरु गोरखनाथ, जिन्हें गोरक्षनाथ भी कहा जाता है, एक महान योगी और संत थे। वे नाथ संप्रदाय के संस्थापक थे, जो योग, ध्यान और तंत्र के आधार पर एक धार्मिक और आध्यात्मिक संप्रदाय है।  

गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई, यह एक रहस्य है। कुछ लोगों का मानना ​​है कि उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया और मोक्ष प्राप्त कर लिया, जबकि अन्य का मानना ​​है कि उन्होंने एक प्राकृतिक मौत मर ली।  

गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्यों को यह भी बताया कि वे अब भी उनके साथ होंगे, भले ही वे उनके शरीर में न हों। उन्होंने कहा कि वे अपने शिष्यों के दिलों में और उनके आध्यात्मिक मार्ग में रहेंगे।  

गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्यों को आशीर्वाद दिया और फिर उनके शरीर को छोड़ दिया। उनके शिष्यों ने उनके शरीर को एक गुप्त स्थान पर छोड़ दिया, जिसे आज भी कोई नहीं जानता। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ