Shani Chalisa | शनि चालीसा आरती और मंत्र

शनि चालीसा आरती: शनि का नाम सुनकर ही लोगों के अन्दर एक प्रकार का अनजाना सा भय जाग उठता है। शनि को लोग अत्यन्त क्रूर मानते हैं। आम जनता में यह धारणा बन चुकी है कि शनि की अशुभ दृष्टि जिस पर पड़ती है उसका सर्वनाश हो जाता है। 

अनेक प्रकार के दुःख, रोग-व्याधि, धन-हानि, लड़ाई-झगड़े आदि होने लगते हैं किन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं है क्योंकि कोई भी देवता क्रूर नहीं होता। हां यह अवश्य है कि मानव यदि अनुचित कर्म करता है तो उसे देवता प्रताड़ित करते हैं। 

प्रताड़ित करने का उद्देश्य यह होता है कि वह (व्यक्ति) अनुचित कर्मों को छोड़कर सत्कर्म करे । ठीक उसी प्रकार ग्रहों की स्थिति है। सौर मण्डल में नौ ग्रह माने गये हैं। उन नौ ग्रहों में एक 'शनिग्रह' भी है। यह अपनी भीषणता के लिए जगत विख्यात है। 

यही नहीं कि यह जातक को हर प्रकार से हानि ही देता है बल्कि यह कहना उचित होगा कि जातक के जन्म के समय शनिग्रह की जो स्थिति (शुभ या अशुभ) होगी उसी अनुसार जातक को फल प्रदान करता है। 

Shani Chalisa | शनि चालीसा

॥ दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । 
दीनन के दुःख दूरि करि, कीजै नाथ निहाल ॥
जय-जय श्री शनिदेव प्रभु सुनहु विनय महाराज। 
करहु कृपा हे रवि-तनय, राखहु जन की लाज ॥

॥ चौपाई॥
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा तन श्याम बिराजै । माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल कर्ण चमाचम चमके। हिये भाल मुक्तन मणि दमके ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल विच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल कृष्णों छाया-नन्दन । यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन ॥
सौरि मन्न शनि दस नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।।
जापर प्रभु प्रसन्न होई जाहीं । रंकहु राऊ करें क्षण माहीं ॥
पर्वतहु तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलन बन रामहि दीन्हा । कैकई की मति हरि लीन्हा ॥
बनहूं मे मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई ॥
लषणहि शक्ति विकल करि डारा। मचि गई दल में हाहाकारा ॥
रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई |
दियो कीट करि कंचन लंका । बीज बजरंग वीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर जब पगु धारा । चित्र मयूर निगल गै हारा ॥
हार नौलखा लग्यो चोरी । हाथ-पैर कटवायो तूं ही ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हो । तब प्रसन्न प्रभु हैं सुख दीन्हो ॥
हरिश्चन्द्र हुं नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
वैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी मीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहि गह्यो जब जाई । पार्वती को सती कराई ॥
तनि बिलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि गयो गौरी सुत सीसा ॥
पाडंव पर हैं दशा तुम्हारी । बची द्रोपदी होति उघारी ॥
कौरव की भी गति-मति मारी । युद्ध महाभारत करि डारी ॥
रवि कँह मुख मँह धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो -पताला ॥
शेष देव लीख विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना । गज दिग्गज गदर्भ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नखधारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
गदर्भ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहिं चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लोह चांदी अरू ताम्बा ॥
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन सम्पति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत सुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगलकारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावै लीला । करैं शत्रु के नशि बल ढीला ।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥

॥ दोहा ॥
प्रतिमा श्री शनि देवकी, लोह धातु बनवाय ।
प्रेम सहित पूजन करे,सकल कष्ट कटि जाय ॥
चालीसा नित नेम यह,कहहिं सुनहिं धरि ध्यान ।
निश्चय शनि ग्रह सुखद बने, पावहि नर सम्मान ॥

  

Shani Aarti - शनि देव की आरती

ॐ जय शनिदेव हरे, प्रभु जय रविपुत्र हरे ।
आरती जो तेरी गावे, संकट से उबरे ॥ ॐ जय शनिदेव हरे ॥ १ ॥
सूर्य पुत्र बलधारी, यम के हैं भ्राता ।
छाया मातु भवानी, वाहन हैं भैंसा ॥ ॐ जय शनिदेव हरे ॥ २ ॥
तेरी क्रूर दृष्टि से, शिव ग्रासे घासा ।
दशरथ नन्दन भटके, वन-वन में प्यासा ॥ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ३ ॥
गणपति पे की दृष्टि, सिर विच्छेद किए।
कुपित हुए रावण पे, लंका दहन किए॥ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ४॥
पुत्र व नारी बिकाए, हरिश्चन्द्र राजा।
नाल को वन भटकाए, तूने महाराजा ॥ॐ जय शनिदेव हरे ॥५॥
होत प्रसन्न हैं जिनपे, बना देत राजा।
दृष्टि टेढ़ी करते, मिटते महाराजा।। ॐ जय शनिदेव हरे ॥६॥
देव-असुर व मानव, सब तुमसे डरते।
कुपित होत ही सबके सुख-सम्पत्ति हरते ॥ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ७ ॥
आरती जो तेरी गावे, विपदा कष्ट टरे ।
सुख सम्पत्ति पावे, लक्ष्मी घर में बसे ॥ ॐ जय शनिदेव हरे ॥ ८ ॥

Shani Dev Mantra - तंत्रोक्त शनि देव मंत्र 

शनि मंत्र का जप आरम्भ करने से पूर्व विधिपूर्वक विनियोग ऋष्यादिन्यास, करन्यास आदि करें। यदि जातक की जन्मकुण्डली में शनि शुभ भाव में विराजमान हो तो जातक को राजा बना देता है। धन-सम्पत्ति मोटर वाहन, मकान, सन्तान आदि सभी से परिपूर्ण कर देता है। अशुभ होने पर दुःख, धन-हानि, रोग, दरिद्रता आदि अनेक प्रकार की विषम स्थितियां उत्पन्न कर देता है।  

विनियोग अस्य 
श्री शनि मंत्रस्याथर्वण ऋषिः, गायत्री छन्दः, 
शनैश्चरो देवता, आपो बीजं, शं शक्तिः, अभीष्ट सिध्यये विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यास 
अथर्वण ऋषये नमः शिरसि
गायत्री छन्दसे नमःमुखे
शनैश्चर देवतायै नमः हृदये 
आपोबीजाय नमः गुह्ये
शं शक्तये नमः पाद्यो


करन्यास  
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
खां तर्जनीभ्यां नमः ।
ख्रीं मध्यमाभ्यां नमः ।
खूं अनामिकाभ्यां नमः ।
सः कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ खां खीं ख़ू सः करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ।


अथ ध्यानम् 
न्यासादि करने के उपरान्त निम्नलिखित मंत्र का पाठ करते हुए शनि देव के स्वरुप का ध्यान करें

ॐ नीलाम्बरः शूलधरः किरीटी गृध्र स्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् । 
चतुर्भुज: सूर्यसुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यं वरदोल्पगामी ।।


ध्यान के उपरान्त निम्न मंत्रों में से किसी एक मंत्र का जाप उसके सम्मुख दी गयी जप संख्या के अनुसार करें। 
  1. ॐ शं शनैश्चराय नमः । न्यूनतम जप संख्या 23 हजार है। (तंत्रसार के अनुसार)
  2. ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः । यह तंत्रोक्त बीज मंत्र है। इसकी जप संख्या 19 हजार है।
  3. ॐ खां खीं खूं सः । जप संख्या 19 हजार है।

उम्मीद करते हमारी ये शनि चालीसा और आरती ब्लॉग पोस्ट आपको पसंद आई होंगी, कैसे आप शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि मंत्र, शनि चालीसा का पाठ कर सकते है।

FAQ :

1. शनि देव की सबसे प्रिय राशि कौन सी है?
A: वृषभ, तुला, मकर और कुंभ यह राशि शनि देव की अत्यंत प्रीय़ मानी जाती है।

2. शनि किसका देवता था?
A: शनि देव कर्म के देवता है, व्यक्ति के कर्म के अनुसार अच्छा या बुरा फल देते है।

3. शनिदेव को खुश करने के लिए क्या करना चाहिए?
A: शनिदेव को खुश करने के व्यक्ति को सत्कर्म यानि अच्छे काम दान धर्म करना चाहिए।

4. शनि देव को क्या प्रिय है?
A: शनि देव को सरसों का तेल अत्यंत प्रिय है।

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